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    श्रद्धा, शक्ति और संस्कृति का संगम – बराही धाम

    बराही धाम झारखंड की पावन भूमि पर स्थित एक दिव्य शक्ति पीठ है, जो न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि संस्कृति, सेवा और आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है। माँ बराही की कृपा से यह धाम एक ऐसे युगांतरकारी प्रयास के रूप में स्थापित हो रहा है, जहाँ श्रद्धालु न केवल दर्शन करने आते हैं, बल्कि आत्मिक शांति, ऊर्जा और जीवन का उद्देश्य भी प्राप्त करते हैं।

    हमारा उद्देश्य न केवल धर्म और पूजा का प्रचार करना है, बल्कि सेवा, रोजगार, और शिक्षा के माध्यम से समाज के हर वर्ग को जोड़ना भी है। बराही धाम आने वाला हर व्यक्ति एक नई ऊर्जा, नई प्रेरणा और एक दिव्य अनुभव लेकर लौटता है।

    यह धाम आने वाली पीढ़ियों के लिए न केवल एक धार्मिक स्थल होगा, बल्कि यह एक संस्कृति-संवर्धन केंद्र, धार्मिक पर्यटन स्थल, और सामाजिक उत्थान का माध्यम बनेगा।

    “बराही धाम – आस्था की ऊँचाइयों को छूता एक युगांतकारी संकल्प।”

    बराही माता को देवी दुर्गा के एक उग्र रूप के रूप में पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर शक्ति की विशेष उपस्थिति है, और यहाँ सतयुग से लेकर अब तक साधकों और भक्तों का आगमन होता रहा है।

    यह माना जाता है कि बराही माता की मूर्ति किसी साधु को एक तपोवन में प्राप्त हुई थी। उन्होंने माता को वहीं स्थापित किया और तपस्या करने लगे। धीरे-धीरे यह स्थल एक प्रमुख शक्ति पीठ के रूप में विकसित हुआ।

    स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, बराही धाम में कई चमत्कारी घटनाएँ घटित हुई हैं – जैसे कि बीमारियों का ठीक हो जाना, भक्तों की मनोकामना पूर्ण होना, आदि। यही कारण है कि दूर-दूर से लोग यहाँ दर्शन करने आते हैं।

    नवरात्रि के दौरान यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु माँ के दर्शन करने आते हैं। इस दौरान विशेष पूजा, हवन और भंडारा होता है।

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    बराही माता कौन हैं?

    “बराही” देवी का उल्लेख देवी भागवत पुराण और तंत्र शास्त्रों में मिलता है।

    माँ दुर्गा के वराह अवतार (सुअर के मुख वाली देवी) को बराही कहा गया है।

    इन्हें तामसिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है – यानी कि रक्षक और संहारक दोनों।

    यह देवी असुरों का नाश करने और धर्म की रक्षा करने के लिए जानी जाती हैं।

     

    🔱 मंदिर का इतिहास व मान्यताएँ (संक्षेप में):

    1. प्राचीनता:
    बराही धाम को सतयुग या त्रेतायुग से भी पुराना माना जाता है। यहाँ की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है, जिससे यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित है।

    2. खोज व पुनःस्थापना:
    लोककथाओं के अनुसार, एक तपस्वी को तप के दौरान माँ की मूर्ति मिली। गाँव वालों के सहयोग से मंदिर की स्थापना हुई और माँ की नियमित पूजा शुरू हुई।

    3. राजाओं की भूमिका:
    ब्रिटिश काल में भी स्थानीय राजाओं और जमींदारों ने मंदिर की सेवा और सौंदर्यीकरण में योगदान दिया, लेकिन माँ की मूल प्रतिमा को यथावत रखा गया।

    4. चमत्कार व मान्यताएँ:
    भक्तों का विश्वास है कि माँ बराही सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य सुनती हैं। कई श्रद्धालु चमत्कारी अनुभव जैसे बीमारी से मुक्ति, संतान प्राप्ति और आर्थिक उन्नति की गवाही देते हैं।

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